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वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने मीडिया के इस खतरे से कराया रूबरू...



एक्‍सचेंज4मीडिया न्‍यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (ENBA) समारोह में 'Newsroom 2020को लेकर आयोजित पैनल डिस्‍कशन में इंडिया न्‍यूज’ के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने आने वाले समय में यानी 2020 तक न्‍यूजरूम के भविष्‍य को लेकर अपने विचार व्‍यक्‍त किए।
उन्‍होंने कहा कि यदि हम 2020 की बात करें तो यह जब से 20-20 क्रिकेट में आया तो कई लोगों को इस बात पर ऐतराज होने लगा और परेशानी भी कि इसने क्रिकेट के सभी नियमों को खराब कर दिया। तो 2020 के साथ तो हमेशा इस तरह का खतरा बना रहता है। 20 और 20 जोड़ दें तो यह 40 हो जाता है। अलीबाबा के साथ 40 चोरों का जिक्र हम अक्‍सर करते हैं।
उन्‍होंने कहा, ‘मेरा इशारा आने वाले वक्‍त की तरफ है। उन्‍होंने कहा कि एक परिवार था। उसका मुखिया हमेशा गाली देकर बात किया करता था। बाकी सब शरीफ थे। उसके जो दो बेटे थेधीरे-धीरे उन्‍होंने गाली सीख ली। उसके नीचे उसके दो-चार पोते थेउन्‍होंने भी गाली सीख ली। बाद में जब समाज में घूमते-फिरते थे तो लोग उस परिवार के बारे में तमाम तरह की बातें करते थे। ऐसे में परिवार के लोग आपस में बैठकर बात करते थे और कहते थे कि गाली ठीक नहीं है। हम लोगों को गाली छोड़नी चाहिएबिना गाली के बात करनी चाहिए। गाली देने से लोग शरीफ नहीं मानते हैं। वे आपस में मिल-बैठकर तो इस तरह की बातें कर लेते थे लेकिन जब घर से बाहर जाते थे तो फिर गाली देकर ही बात करते थे। हम लोग भी यही करते हैं। मीडिया हमेशा से काफी जिम्‍मेदार और जवाबदेह महकमा रहा है और लोकतंत्र का मजबूत स्‍तंभ रहा है। लोगों का बहुत भरोसा रहा है। मीडिया की बदौलत इस देश में बहुत सारी चीजें बदली हैंबदलती रही हैं और बदल भी रही हैं। क्‍योंकि कुछ लोग वाकई में वो काम करते हैंजिसके लिए वे इस फील्‍ड में आए हैं। 'आज तक' के मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद ने बिल्‍कुल ठीक कहा कि जब मैंने बहुत सोचा कि 2020 का मीडिया कैसा होगा तो पता चलेगा कि एक रिपोर्टर हैउसके हाथ में झंडा है। एंकर के हाथ में भी एक झंडा है और हर आदमी बंटा हुआ है। ये जो पूरा प्रेस हैये प्रवक्‍ताओं की टोली में बंटा रहेगा।

राणा यशवंत का कहना था, ‘टेक्‍नोलॉजी जिस रफ्तार से बढ़ रही हैवह हमारी जिंदगी में दाखिल होती जा रही हैं। इसमें काफी सहूलियतें हैंउसमें रफ्तार है लेकिन इसके साथ ही उसमें खतरे भी ज्‍यादा हैं। 2020 में टेक्‍नोलॉजी की मदद से आप काली गंगा को कल-कल बहती हुई दिखा सकते हैं। आप सूखी नदी को लबालब दिखा सकते हैं। सवाल ये है कि आप ने अपने कंधे पर किस आदमी का झंडा ले रखा हैउस तकनीक का इस्‍तेमाल आप उस तरह से कर सकते हैं। जैसे-आज सोशल मीडिया में होता है। अभी इस पैनल के मॉडरेटर रोहित बंसल कह रहे हैं कि वॉट्सएप आता है। पर ये भी समझिए कि वॉट्सएप एक एजेंडे के तहत आता है और आप इसे शेयर करते रहिए लगातार। टेक्‍नोलॉजी खबरों की दुनिया में रफ्तार पैदा करने के लिए है। व्‍युअर को देखने में थोड़ा इंटरेस्‍ट आएइस लिहाज से है। लेकिन हमारी पूरी तासीर बदल जाएपूरी तबियत बदल जाएइसके लिए तो टेक्‍नोलॉजी नहीं होती। होती भी नहीं हैलेकिन हम उसका इस्‍तेमाल उसी तरह से करेंगे। उन्‍होंने कहा कि जहां तक कंटेंट का सवाल हैआज भी कंटेंट को लेकर जिस तरह से बंटवारे हैंजोखिम हमारे पेशे का सबसे बड़ा ये है कि फील्‍ड रिपोर्टिंग हमने बंद कर दी है। रिपोर्टर नहीं हैस्‍टूडियो में जो सूटेड-बूटेड एंकर बैठा हुआ हैजिसने कभी जमीन नहीं देखी। कभी खेत नहीं देखावह गेहूं को धान कहता हैधान को गेहूं कहता है। उसके हवाले पूरा मुल्‍क है। वो बैठकर तय करता है कि इस देश में फलां मुद्दे पर देश के लोगों की राय क्‍या होगी। वो अपना खूंटा गाड़कर रखता है।
अपने गांव की एक कहावत ‘हम पंचायत की बात मानेंगे लेकिन खूंटा हमारा यहीं रहेगा’ का जिक्र करते हुए राणा यशवंत का कहना था कि उस आदमी को हमने ये जिम्‍मा दे दिया कि खूंटा गाड़कर रखें। पूरे देश को हमने यह बताना है कि हमारी कंपनी या हमारे आर्गनाइजेशन का एजेंडा क्‍या है?
उन्‍होंने कहा, ‘पॉलिटिकल पार्टी के किसी एजेंडे को हम लोग कैरी करते हैं। ये जर्नलिज्‍म है क्‍या। 2020 में हम बुनियादी तौर पर तो नहीं बदल सकते हैं। एक हॉकी का खिलाड़ी क्रिकेट का प्‍लेयर तो नहीं बन सकता है। हॉकी वाला बेसबॉल नहीं खेल सकता। हम खेल के अलग कायदे होते हैंखिलाड़ी अलग-अलग होते हैं। जर्नलिज्‍म एक दूसरे तरह का पेशा है और इसमें हम हैं। 2020 का कंटेंट क्या होगाक्‍योंकि अभी की जो राजनीति हमारी हैउस राजनीति में जिस तरह से राजनीति का दखल मीडिया के भीतर है या मीडिया की जो हिस्‍सेदारी राजनीति में है। उसमें पता ही नहीं चलता है कि वह रिपोर्टर है अथवा प्रवक्‍ता है। वह एंकर है अथवा पार्टी का आदमी है। ये जो लकीर हैवह मिटती जा रही है और खतरे का सबसे बड़ा कारण है। इसलिए पॉलिटिकल पार्टी और मीडिया के बीच की लकीर का मिटनापालिटिकल पार्टी के बेकार के इंटरेस्‍ट का बढ़ता जाना। ये सब खतरे का संकेत है।
उन्‍होंने राजनीतिक दलों की ओर निशाना साधते हुए कहा, ‘आप यात्रा करते हैं जैसे परिवर्तन यात्रा अथवा संकल्‍प यात्रा लेकिन इन सबके पीछे एक एजेंडा छिपा रहता है। उस एजेंडे की पूर्ति आप हमसे यानी मीडिया से करवाने की कोशिश करते हैंइसलिए जो पॉलिटिकल पार्टी का अपना जो एजेंडा है और जिसे आप समाज में एक राय के जरिये स्‍थापित करना चाहते हैंउसका जरिया हम हैं। हम यही काम करते हैंयह कंटेंट का इश्‍यू है।
टेक्‍नोलॉजी इसमें बड़ा खतरा ये पैदा करेगी कि जहां कहीं भी आप कहीं कमजोर हैंटेक्‍नोलॉजी के जरिये मैं उसे मजबूत करूंगा और जहां आप मजबूत हैं वहां कोई दूसरा आदमी आपको कमजोर करने की कोशिश करेगा। यानी जो सच हैउसके बारे में भ्रम की स्थित पैदा करो और यही होता है। पता नहींएक आदमी सोशल मीडिया पर कितनी बार मरता है। सोमनाथ दा के इंतकाल से पहले करीब तीन-चार बार सोशल मीडिया पर वे चले। बच्‍चन साहब के बारे में भी ऐसा ही हुआ। आप देखिए कि ढाई-तीन मिनट का एक विडियो बनाया जाता हैजिसमें एक आदमी की दाढ़ी पकड़कर उसे दूसरा आदमी मारता रहता हैगाली देता रहता हैउससे कुछ कहलवाने की कोशिश करता है। ये विडियो आता है और फिर टेलिविजन चैनलों पर चलता है। यह सब कुछ विवेक का सवाल है। एक आदमी जाहिलगंवारजिसने एक विडियो बनायाउसे सोशल मीडिया पर डाला और टेलिविजन चैनलों ने उठाया और पूरे देश में आग लगा दी। क्या ये कंटेंट है? 
यह सवाल उठाते हुए राणा यशवंत ने कहा, ‘आखिर हमारी क्‍या जिम्‍मेदारी है। इन्‍हीं जाहिल गंवारों को उठाकर हम चलाते रहें और देश का माहौल खराब करते रहें। हमको पहले ये समझना होगा कि हम क्‍या हैं? हमारी अपनी भूमिका क्‍या है इस समाज में? क्या हम कठपुतली हो गए हैं? जो आता है और अपने मुताबिक नचाता है। माना पेशे की मजबूरियां हैंहर इंडस्ट्री की तरह यहां भी तमाम बाते हैं लेकिन उन चीजों के दायरे में खड़े होकर भी क्‍या आप अपनी भूमिका को बेहतर तरीके से निभाने की कोशिश नहीं कर सकते कर सकते हैं? और यदि नहीं कर सकते हैं तो फिर बाहर आइए। फिर तो हम नौकरी करते हैंहम पत्रकार नहीं हैहम बैंक वाले, आईटी प्रफेशनल हैं और क्या? इसलिए 2020 में इस देश की राजनीति के सामने जो चुनौतियां हैंउससे ज्‍यादा बड़े खतरे इस देश के समाज के सामने हैं और उससे कहीं ज्‍यादा संकट इस देश की मीडिया के सामने है। इसमें समझ का सवाल ज्‍यादा हैविवेक का सवाल ज्‍यादा है। आप जितना पढ़ेंगेजितना समझेंगेसमाज को लगातार जमीन पर उतरकर देखिए तब समझिए कि सच्‍चाई क्‍या है? ये न्‍यूजरूम हैजिसमें स्‍टूडियो में बैठकर एंकर टाई लगा लेता है और उसके बाद चिल्‍लाना शुरू कर देता है। लगता है कि इस देश का प्रवक्‍ता वही है। पूरे देश में आग लगाकर रख दी है ऐसे लोगों ने। हमको फील्‍ड रिपोर्टिंग पर जोर देना होगा। वैसे लोगों को उतारना होगा जो जमीन पर आएं और जमीन के सच को साहस के साथ रखने की कोशिश करें।
उन्‍होंने कहा, ‘मैं जानता हूं कि हमारी भी मजबूरी हैं। हम सबकी है लेकिन मजबूरियों के आगे घुटने टेककर हम इस पेशे को खत्‍म कर रहे हैं। ये बडा सच हैइस सच को चिकने-चुपड़े लहजे में मैं आपसे कह दूं या इसे मैं सपाट बयानी में कह दूंजैसे में कह रहा हूं। सच कभी नहीं बदलता बल्कि वह सच ही रहता है। आप किसी टेक्‍नोलॉजी की बदौलत कुछ इसमें फेरबदल कर दें, वह फरेब है। किसी एंकर को खड़ा कर दो-चार लोगों को चुप कराकर आप जो साबित करना चाहते हैंवह फरेब हैसच नहीं है। इसलिए 2020 में जो भी होसबसे पहले इस सिस्‍टम को बदलना है। टेक्‍नोलॉजी बदलती रहेगी। ये बहुत जरूरी है।
पैनल डिस्‍कशन के बाद सवाल-जवाब के क्रम में एक सवाल के जवाब मं इंडिया न्यूज के मैनेजिंग एडिटर
राणा यशवंत का कहना था, ‘पहले मैं यह स्‍पष्‍ट कर दूं कि जाहिल-गंवार एक सोच हैमानसिकता है और किसी स्‍टेटस से उसका कोई सरोकार नहीं है। जैसे कि कोई हत्‍या करता हैवह हत्‍यारा होता हैइसी तरह से जाहिल गंवार का मतलब भी यही है कि किसी भी तरह से व्‍यक्ति ने अपने देश अथवा समाज को गलत राह पर ले जाने की साजिश कीउस व्‍यक्ति की सोच वैसी हैमानसिकता वैसी है तो वह जाहिल-गंवार की श्रेणी में आते हैं। मेरे लिए बस वही जाहिल-गंवार है और कोई नहीं है। मेरे लिए इंसान सबसे बड़ा है और हर आदमी की मैं इज्‍जत करता हूं। दूसरी बात ये कि कार्यक्रम में अभी किसी मैडम ने कहा कि हर फील्‍ड करप्‍ट हो गया है और दो महीने से मैंने टेलिविजन चैनल देखना बंद कर दिया है तो मेरा कहना यही है कि देखने का अपना नजरिया होता है। जैसे कि अभी अमेरिका से पधारे पुनीत अहलुवालिया ने कहा कि राम ने भी लॉबिंग कीकृष्‍ण ने भी लॉबिंग कीकिसके लिए की और किस उद्देश्‍य से कीये महत्‍वपूर्ण होता है। आप राम पर सवाल करते हैं तो कहते हैं कि उन्‍होंने बालि का वध कियाइसलिए राम सवालों के घेरे में हैं। कृष्‍ण पर सवाल करते हैं तो कहते हैं कि अश्‍वत्‍थामी का वध करायाकर्ण का वध करायाद्रोणाचार्य का वध करायाबहुत सारे वध कराएइसलिए कृष्‍ण गलत हैं। किसी भी आदमी को देखने के दो आयाम होते हैंआप कैसे देखते हैं ये बहुत जरूरी है। इसी तरह से हम समाज और देश के भीतर सरकार और सरोकार का मामला हैयह हमारे नजरिये का है। आज की तारीख में संपादक या जो लोग मीडिया में काम कर रहे हैंउनका विवेक ज्‍यादा हो गया है। उनकी समझ का सरोकार यानी कि मेरी जो बुनियादी बनावट हैउसी लिहाज से मैं चीजों को देखूंगा और समझूंगा।
चीजें लगातार आ रही हैंइसलिए जब बात उठती है कि 2020 की मतलब डिजिटल मीडिया की तो मैं यही कहूंगा कि हर आदमी डिजिटल प्‍लेटफॉर्म पर होगाटेक्‍नोलॉजी तेजी से बदल रही हैहम एक साथ कई प्‍लेटफॉर्म पर जुड़े रहते हैं। एक ही आदमी फेसबुक परट्विटर पर और इंस्‍टाग्राम पर भी होगा और वह किसी चैनल पर भी काम करता है तो मेरा कहना यह है कि वह सभी प्‍लेटफॉर्म पर एक जैसा ही होगा क्‍योंकि उसकी बुनियादी बनावट एक सी है
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