वरिष्ठ टीवी पत्रकार राहुल कंवल ने पिछले दिनों अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में 'इंडिया कॉन्फ्रेंस 2018' (indiaconf2018) को संबोधित किया। 'fighting the disruption caused by political propaganda and fake news' विषय पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राहुल कंवल ने कहा कि भारत में पत्रकारिता एक बहुविकल्पीय प्रश्न बनती जा रही है। अक्सर पूछा जाता है कि क्या आप भक्त हैं, पिद्दी हैं या कुछ और हैं। लेकिन मेरा जवाब है कि मैं इनमें से कुछ नहीं हूं। मेरा कहना है कि जो पत्रकारिता नफरत फैलाती हो, जिसे रेटिंग की चिंता रहती हो और समाज को गुमराह करती हो, ऐसी पत्रकारिता का बहिष्कार कर देना चाहिए। लोगों को इस तरह की पत्रकारिता का चुनाव करना चाहिए जो दोनों पक्षों की बातों को स्टोरी में शामिल करे।
राहुल कंवल ने कहा, 'हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में मैं आप लोगों से अपील करता हूं कि इस तरह की पत्रकारिता का स्वागत करें जो बिना किसी राजनीतिक दबाव के स्टोरी में दोनों पक्षों की बात करे और जो सभी राजनीतिक दलों से कड़े से कड़े सवाल पूछ सके, फिर चाहे वह भारतीय जनता पार्टी हो, कांग्रेस हो अथवा कोई क्षेत्रीय पार्टी। मैं आप लोगों से गुजारिश करता हूं कि ऐसी पत्रकारिता को कतई स्वीकार न करें जो किसी राजनीतिक दल के दबाव में किसी खास पक्ष के बारे में बात करती हो। इस तरह की पत्रकारिता को सपोर्ट करना चाहिए जिस पर किसी तरह का दबाव नहीं हो और वह निष्पक्ष हो। हमें इस तरह के पत्रकारों को रिजेक्ट कर देना चाहिए जो सत्ताधारी दलों के नेताओं के चीयरलीडर्स् की तरह काम करते हैं। इसके अलावा लोगों को ऐसी मीडिया से परहेज करना चएिहए,जिन्हें उस पार्टी में जिसे वे पसंद नहीं करते हैं, हर चीज गलत दिखाई देती हो और जिनके कान सही बातें नहीं सुनना चाहते हों। मीडिया को हमेशा स्पष्ट और निष्पक्ष होना चाहिए और स्टोरी में दोनों पक्षों की बातों को शामिल करना चाहिए। स्टोरी के सभी मूलभूत तत्वों को उसमें शामिल करना चाहिए, तभी स्टोरी कंप्लीट हो सकती है। लेकिन भारत में इन दिनों ऐसा लगता है कि ऐसा काफी मुश्किल से हो रहा है।'
हाल ही में मैंने देश के एक बहुत ही लोकप्रिय और एग्रेसिव एंकर को सुना, जो नॉर्थ कोरिया के बारे में अपना पक्ष रख रहे थे। लेकिन मेरा मानना है कि जब भी आप किसी एक का पक्ष ले रहे हैं तो आप पत्रकारिता नहीं कर रहे हैं। आप निष्पक्ष स्टोरी को लोगों तक नहीं पहुंचा रहे हैं। ऐसे में आप पॉलिटिकल प्रोपेगैंडा के बिजनेस में शामिल हो जाते हैं और दिखावा करते हैं। ऐसे दिखावा करने वाले लोगों से सिर्फ यही कहना है कि यदि ऐसा ही लोगों को करना है तो उन्हें पत्रकारिता छोड़कर पॉलिटिकल पार्टी को जॉइन कर लेना चाहिए।
राहुल कंवल का यह भी कहना था, 'क्या हम लोग पूरी तरह से निष्पक्ष रह सकते हैं। क्या हम जो पत्रकारिता करते हैं, वह पूरी तरह सही है, ऐसा नहीं है, क्योंकि हम मनुष्य हैं और कहीं न कहीं गलती करते हैं लेकिन हमें स्टोरी के दोनों पक्षों को उजागर करने का प्रयास जरूर करना चाहिए। मैं आप लोगों से पूछता हूं कि आजकल भारत में कितने टीवी एंकर, कितने एडिटर्स और कितने टेलिविजन चैनल हैं जो स्टोरी के दोनों पहलुओं को दिखाने का प्रयास कर रहे हैं। क्या देश इस बारे में नहीं जानना चाहता है।'
राहुल के अनुसार, 'लोग मुझसे पूछते हैं कि आपके राजनीतिक विचार क्या हैं। आप किस राजनीतिक दल को सपोर्ट करते हैं। मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि सेना से है, जिनका मानना है कि सब नेता चोर हैं, भ्रष्ट हैं और उन्हें लाइन में खड़ा करके गोली मार दें और आपको देश की सभी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। लेकिन मेरी सोच इससे अलग है। मेरा मानना है कि नेताओं को खत्म करने से देश की समस्याओं का खात्मा नहीं होगा। क्या हम ऐसा कर सकते हैं। लेकिन मैं सच कहूं तो किसी को सपोर्ट नहीं करता हूं। सभी पॉलिटिकल पार्टियों के लिए मेरी भावनाएं एक जैसी हैं। आप लोगों की तरह मेरी भी अपनी पसंद और नापसंद है। लेकिन जब मैं रोजाना काम पर जाता हूं तो अपनी पसंद-नापसंद को घर पर छोड़ देता हूं। इन दिनों भारत में पत्रकारिता को विश्वसनीयता की कमी से जूझना पड़ रहा है। आजकल कई संपादक किसी न किसी शो के दौरान पसंदीदा राजनीतिक दल का पक्ष लेते नजर आ जाते हैं लेकिन पहले सार्वजनिक तौर पर ऐसा नहीं होता था। आजकल कुछ लोगों को शो में बुलाकर डिबेट कराई जाती है और एंकर चुपचाप बैठा रहता है। वे सभी लोग एक-दूसरे पर चीखते चिल्लाते रहते हैं लेकिन एंकर उन्हें नहीं टोकता कि आखिर ये हो क्या रहा है। यदि हम इसी को पत्रकारिता कहते हैं तो इससे देश का कुछ भला नहीं होने वाला है। इससे देश के सामाजिक सद्भाव और ताने-बाने को नुकसान हो रहा है।'
राहुल कंवल का कहना था, 'आज मैं आप सबसे यही कहने आया हूं कि बेकार के शोरशराबे को खारिज कर दें और असली पत्रकारिता का चुनाव करें और उसका स्वागत करें। हम इसे पत्रकारिता नहीं कह सकते हैं कि रोजाना रात को कुछ लोगों को बुलाकर बहस करा लो। एक तरह कुछ मौलाना बैठे हों, कुछ पंडित बैठे हों और वे एक-दूसरे पर शब्दों के तीखे वाण छोड़ रहे हों, हंगामा होता रहे और एंकर चुपचाप यह सब देखता रहे, तो मेरी नजर में यह पत्रकारिता नहीं है।
जब मैंने कई पत्रकारों से इस बारे में बात की तो उनके इस स्थिति को लेकर काफी निराशा दिखार्इ दी। कई संवेदनशील पत्रकारों का कहना था कि यह सही नहीं है और ज्यादा समय तक इस तरह की पत्रकारिता चलने वाली भी नहीं है। इसे छोड़कर कुछ और करते हैं। उन्होंने आज की पत्रकारिता पर कटाक्ष करते हुए कहा कॉरपोरेट कम्युनिकेशन काफी आसान है। पॉलिटिकल कम्युनिकेशन में फन है। आखिर वे भुगतान करते हैं, फिर चाहे वह काला धन ही क्यों न हो। ऐसे में मेरा उन सभी लोगों से यही कहना है जो पत्रकार हैं अथवा पत्रकार बनना चाहते हैं कि यह रोड काफी फिसलन भरी है और इसमें तमाम तरह की गंदगी भी है, लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हम लोग घर पर बैठ जाएं। ऐसे में आगे बढ़ना चाहिए और इन चुनौतियों का सामना करना चाहिए और यह प्रण लेना चाहिए कि वे मैदान छोड़कर नहीं भागेंगे। यह भी तय करना चाहिए कि वे किसी भी तरह भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं बनेंगे। चाहे कोई किसी का भी पक्ष क्यों न ले रहा हो, वे ऐसा नहीं करेंगे। कुछ लोग राजनीतिक दलों का प्रचार-प्रसार भले ही कर रहे हों लेकिन वे अपनी सोच को नहीं बदलेंगे। यह भी तय करना होगा कि हम इस प्रोफेशन में हैं और हम सच्चाई की लड़ाई लड़ेंगे।
राहुल कंवल ने कहा, 'पिछले कुछ वर्षों में स्थिति काफी बदली है। जब मैं अमेरिका पहली बार आया था, मैं फॉक्स न्यूज देख रहा था तो मुझे बड़ी हैरानी हुई वहां एक-दूसरे की कोई नहीं सुन रहा था। इसके कुछ मिनट बाद ही मैंने देखा कि सवालों का दौर एकपक्षीय हो गया। यह काफी डरावना अनुभव था और मैंने चैनल बदल दिया। मैंने अपने आपसे कहा कि शुक्र है, ऐसा हमारे देश में कभी नहीं हो सकता है। भारत में हम स्टोरी के दोनों पक्षों को दिखाते हैं। हम कठिन से कठिन सवालों को भी पूछते हैं और हम खुलेआम किसी एक का पक्ष नहीं लेते हैं। लेकिन इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि अब हमारे यहां के कई पत्रकार किसी एक दल के समर्थक नजर आते हैं। इंडियन न्यूज टीवी अब फॉक्स टीवी की तरह व्यवहार कर रहा है। आजकल सभी कुछ लोकप्रियता हासिल करने के लिए किया जा रहा है। जब मैं वक्ताओं के लाउंज में बैठा था तो मुझसे पूछा गया कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है। दरअसल, आजकल सभी टेलिविजन चैनलों में टीआरपी की होड़ लगी हुई है और कई एंकर व एडिटर्स अपनी विचारधारा को थोपने में लगे हुए हैं।'
एक उदाहरण का जिक्र करते हुए राहुल कंवल ने बताया, 'कुछ वर्ष पूर्व हमारे साथ एक एडिटर काम करते थे। एक बार सहयोगियों के साथ परिचर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे एक पार्टी के पक्ष में हवा बनाई जा सकती है। आज वही एडिटर एक प्रमुख चैनल में महत्वपूर्ण पद पर है। मुझे यह देखकर बड़ा आश्चर्य होता है कि उस व्यक्ति के जो निजी विचार हैं, चैनल पर रेटिंग की वजह से वह दूसरी पार्टी का समर्थन करता नजर आता है। यह अवसरवादिता नहीं तो और क्या है। एक सवाल जो आप लोगों के दिमाग में भी आ रहा होगा कि आखिर यह सब बातें व्यवहार में क्यों नहीं आ पातीं तो मुझे लगता है कि इस बारे में सभी लोगों के अपने-अपने विचार होंगे। लेकिन मैं आपको कुछ उदाहरणों से बता सकता हूं कि हमारी पत्रकारिता किस तरह की है। मोदी सरकार में भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे भाजपा नेता एकनाथ खडसे ने इस्तीफा दे दिया था। वह मंत्री किसी समय में महाराष्ट्र सरकार में काफी पॉवरफुल हुआ करते थे। उन्हें इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा चलाई गईं सिलसिलेवार स्टोरी के बाद ही पद से हटाया गया था। इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा ब्रेक की गईं तीन इन्वेस्टिगेटिव स्टोरी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा पर अपनी चुप्पी तोड़ी थी। पंजाब में गोरक्षा दल के प्रमुख इस मामले में अभी जेल में हैं, उनके खिलाफ यह कार्रवाई इंडिया टुडे ग्रुप की स्टोरी के बाद की गई है।
दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में जब विवाद चरम पर था तो सिर्फ इंडिया टुडे ग्रुप ने कन्हैया के मामले में फॉरेंसिक जांच का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था। ग्रुप ने उस मामले को भी उजागर किया था जिसने वकील कन्हैया कुमार को पीट रहे थे और पुलिस मूकदर्शक बनी हुई थी। यही नहीं हमने हाल ही में करणी सेना की स्टोरी भी की थी, जिसमें एक मीटिंग के दौरान करणी सेना के लोग उनकी फिल्म पद्मावत को रिलीज करने के लिए संजय लीला भंसाली से पैसा वसूली की बात कर रहे थे। इसके अलावा हुर्रियत नेताओं पर भी स्टोरी की थी। जिसमें बताया था कि हुर्रियत के दस नेता पर्दे के पीछे इस देश के लोगों के बारे में क्या सोचते हैं। मेरे कहने का मतलब यही है कि हमें हमेशा सच का साथ देने का प्रयास करना चाहिए और निष्पक्ष पत्रकारिता करनी चाहिए। पत्रकारिता ऐसी होनी चाहिए जिस पर किसी का रंग न चढ़े बल्कि दोनों पक्षों को समान भाव देने का प्रयास करना चाहिए। जो सरकार को पसंद करते हैं, वे कहेंगे कि हम ज्यादा ही आलोचक हैं और जो सरकार को पसंद नहीं करते हैं, वे कहेंगे कि हम लोग सरकार की पर्याप्त आलोचना नहीं करते हैं। इस बारे में हमें तय करना है। मूझे पूरा विश्वास है कि हम स्टोरी के दोनों पक्षों को उजागर करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे। इंडिया टुडे ग्रुप में तमाम एडिटर्स और एंकर हैं, जिनके अंदर इतना साहस नहीं है कि वे आपके सामने खड़े होकर सवाल पूछ सकें। वह किस तरह डरे रहते हैं, क्योंकि कहीं न कहीं वे पूर्वाग्रही होते हैं। दरअसल, हमारा काम सिर्फ स्टोरी को बताना है, हम अपने आप में स्टोरी नहीं हैं और न ही बनना चाहते हैं। हमें बड़ी खुशी होगी जब हमें कोई बड़ी स्टोरी मिलेगी फिर हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उससे किस-किसके कारनामे उजागर होते हैं।
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