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कब रुकेगी जंग बड़े अफसरों की




बसपा सुप्रीमो मायावती ने आंकड़ों के साथ कहा कि अखिलेश सरकार कानून व्यवस्था के मोर्चे पर विफल हो गई है। सभी को अंदाजा था कि चैबीस घंटे के भीतर पुलिस अथवा शासन के आला अफसर इस बात का खंडन करेंगे कि जितनी घटनायें पूर्व मुख्यमंत्री बता रही हैं उससे आधी घटनायें भी प्रदेश में नही घटीं। मगर जब पूरा सप्ताह बीत गया तब पता चला कि आखिर सरकार की ओर से कोई भी यह आंकड़ा बताने को तैयार क्यों नही है। दरअसल शुरुआती दौर से ही गृह विभाग और पुलिस महानिदेशक कार्यालय के बीच सब कुछ सामान्य नहीं चल रहा। बची खुची कसर डीजीपी और एडीजी के बीच चल रहे शीतयुद्घ की चर्चाओं ने पूरी कर दी। डीजीपी कार्यालय में अफसरों के बीच चल रही इस जंग का ही नतीजा है कि आईजी संदीप सालुके एडीजी जगमोहन यादव के हस्तक्षेप से नाराज होकर लंबी छुट्टी पर चले गये। अफसरों के बीच चल रही जंग अब सभी के बीच चर्चा का विषय बन गई है।
दरअसल पुलिस महानिदेशक कार्यालय सरकार बनने के बाद से ही लगातार चर्चा का विषय बना रहा। शुरुआती दौर में पुलिस महानिदेशक के नाम को लेकर लंबी चर्चा चली थी मगर बाजी अम्बरीश चन्द्र शर्मा के हाथ लगी। क्योंकि वह मुलायम सिंह परिवार के काफी करीबी समझे जाते थे।
अपर पुलिस महानिदेशक कानून व्यवस्था के लिए सबसे पहले जगमोहन यादव का ही नाम चर्चा में आया और अंततरू उनका ही नाम इस पद के लिए फाइनल हो गया। उनके करीबी भी दावा करते हैं कि वह भी सपा मुखिया मुलायम सिंह के काफी करीबी हैं। लिहाजा इस पद पर उनकी ताजपोशी तो होनी ही थी।
मगर पुलिस महानिदेशक कार्यालय में सत्ता के दो केन्द्र बन जाने के बाद स्थितियां उतनी सहज नहीं रहीं। इस बीच गृह विभाग ने भी अपनी बढ़त बनाने के लिए कुछ निर्णय खुद लेना शुरू कर दिया। इन निर्णयों की जानकारी पुलिस महानिदेशक कार्यालय को काफी समय बाद ही मिल पाती थी। खुद डीजीपी श्री शर्मा की कई बार इस मामले में फजीहत भी हुई।
कानपुर में बलात्कार के आरोपी सीओ शाही के विरुद्घ लग रहे आरोपों के संबंध में जब डीजीपी कह रहे थे कि तथ्य सामने आने पर सीओ के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। तब तक मुख्यमंत्री कार्यालय सीओ को निलंबित कर चुका था। जाहिर है कि यह जानकारी डीजीपी को नहीं दी गयी।
उधर एडीजी जगमोहन के सत्ता के केन्द्र बनने के कारण जिले में तैनात अधिकारियों में भी असमंजस की स्थिति रही कि वह डीजीपी का निर्देश मानें या फिर एडीजी का। यह विवाद अब निचले स्तर पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है। इसी राजनीति के चलते एडीजी जगमोहन यादव और आईजी कार्मिक संदीप सालुके के बीच हुआ विवाद सभी के लिए चर्चा का विषय बन गया है।
बताया जाता है कि तबादलों के लेकर एक सूची एडीजी जगमोहन यादव ने संदीप सालुके को सौंपी थी और कहा था कि यह सूची उपर से आयी है यह जारी कर दो। मगर संदीप सालुके ने यह सूची जारी करने से इनकार कर दिया और जब उन पर दबाव बनाया गया तो उन्होंने लंबी छुट्टी की अर्जी दे दी। उनकी अर्जी के बाद पुलिस महानिदेशक कार्यालय में हड़कंप मच गया। खुद डीजीपी ने इस मामले को रफा दफा करने की कोशिश की मगर आईजी संदीप सालुके लंबी छुट्टी पर चले गये। अफसरों की इसी जंग का नतीजा था कि जब पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने कहा कि दो माह में प्रदेश में 800 हत्यायें, 270 बलात्कार, 245 डकैतियां, 256 अपहरण और 720 लूट की वारदातें हुई हैं तो सन्नाटा छा गया। सभी लोग मान रहे थे कि यह आंकड़ें वास्तविकता के विपरीत हैं। होना तो यह चाहिए था कि तत्काल अफसरों को इस बात का खंडन जारी करना चाहिए था। मगर इसी जंग के कारण इन आंकड़ों को लेकर किसी ने कोई भी बयान जारी नहीं किया जबकि इससे पहले इस तरह का कोई भी आरोप अगर सपा लगाती थी तो कुछ घंटे के भीतर ही खुद कैबिनेट सेके्रट्री अथवा डीजीपी प्रेस कांफ्रेंस करके इन बयानों का खंडन जारी करते थे। इससे होता यह था कि यह सरकारी आंकड़े कहीं ज्यादा विश्वसनीय लगते थे और आरोंपों की धार कम हो जाती थी। मगर इस सरकार में कोई भी अफसर यह जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं दिखता जिससे स्थितियां लगातार खराब हो रही हैं। समस्या यह है कि सत्ता के यह केन्द्र अपने आपको सबसे ज्यादा मजबूत होने का दावा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी कानून व्यवस्था को लेकर संतुष्ट नहीं हैं। अपने आवास पर पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक, प्रमुख सचिव गृह को बुलाकर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर भी कर दी है मगर अफसरों की यह आपसी जंग खत्म हो पायेगी इसकी उम्मीद कम ही है।

अफसरों के बीच जंग कोई नया मुद्दा नही है। अपने आप को सत्ता के सबसे करीब दिखाने की कोशिश में अफसर अपने काम से जुदा कई कामों में लग जाते हैं। मगर जब सरकार बने सिर्फ दो महीने हुए हों और प्रदेश में पुलिस महकमे में डीजीपी कार्यालय में ही अफसरों के बीच राजनीति की खबरें चर्चा का विषय बन जायें तो निश्चित रूप से यह शुभ संकेत नही हंै। खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव इन व्यवस्थाओं से संतुष्ट नहीं हैं। मगर उनके निर्देशों के बावजूद अफसरों की यह राजनीति कम हो पायेगी इसकी आशा नहीं है।
संजय शर्मा

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