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फिर खुली दुकान

संघ के लोग क्या एक बार फिर भुना पायेंगे या फिर यह मुद्ïदा उन्हीं के लिए नुकसानदायक साबित होगा।
Page 1 copyलोकसभा चुनाव से पहले का रिहर्सल अयोध्या में परिक्रमा के ऐलान के साथ शुरू हो गया है। भाजपा मान रही है कि अकेला यही एक मुद्ïदा उसे यूपी में बढ़त दिलवा देगा। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच इस मुद्ïदे के बाद मुस्लिम वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिशें तेज हो गयी हैं। सपा ने मौके की नजाकत को देखते हुए मुस्लिमों को कोटा देने की घोषणा करके बढ़त हासिल कर ली। इस माहौल से साफ हो गया कि अगला लोकसभा चुनाव सिर्फ धर्म के नाम पर लडऩे की योजना पूरी तरह से तैयार हो गयी है। यह सभी जानते हैं कि दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है। भाजपा पिछले लोकसभा चुनाव में चौथे स्थान पर रही थी। पार्टी जानती है कि अगर यही हालत इस बार भी रही तो दिल्ली का सिंहासन दूर हो जायेगा। नरेद्र मोदी का नाम सामने आने के बाद भाजपा के वरिष्ठï रणनीतिकार भी परेशान थे कि यूपी की हालत कै से सुधारी जाये। नरेद्र मोदी खुद भी यूपी के नेताओं पर ज्यादा भरोसा नहीं कर रहे थे। नरेन्द्र मोदी भी यही चाहते थे कि यूपी में धर्म का कार्ड खेलने की जगह विकास का मुद्ïदा ज्यादा उछाला जाये। उनको डर था कि अगर धर्म का कार्ड खेला गया तो बदले में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होगा और इसका सीधा फायदा कांग्रेस को हो सकता है। इसी बिन्दु को परखने के लिए उन्होंने अपने सबसे खास सिपहसालार अमित शाह को लखनऊ भेजा।
अमित शाह ने प्रदेश की सभी बड़े नेताओं से अलग-अलग बात की तो उनको हकीकत समझ में आ गयी। यूपी भाजपा के नेता पूरी तरह से अलग-अलग गुटों में बंटे हुए हैं। अमित शाह समझ गये कि इस तरह के संगठन से विकास के मुद्ïदे पर भाजपा को चुनाव में कामयाबी नहीं मिल सकती।
इसी बीच संघ के पदाधिकारियों ने भी अपने स्तर से प्रदेश के हालात का अंदाजा लिया तो उन्हें भी समझ आ गया कि इस बात के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है कि मंदिर मुद्ïदे के नाम पर ही यह चुनाव लड़ा जाये क्योंकि भाजपा के नेता इस स्थिति में नहीं है कि वह मोदी के विकास एजेंडे के भरोसे यूपी में भाजपा को चुनाव जिता सकें। यह बात तय हो जाने के बाद विश्वहिन्दू परिषद ने इस मुद्ïदे को गरम करने की रणनीति बनाई और विहिप के अशोक सिंघल और पूर्व केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानन्द मुख्यमंत्री से मिलने लखनऊ आये। इस बैठक की गंभीरता का अंदाजा सिर्फ इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरी मीडिया को बुलाकर मुख्यमंत्री इन हिन्दू नेताओं से सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के साथ गुफ्तगू करते रहे। यह प्रेस कांफ्रेंस बेहद खास थी। मगर सभी पत्रकारों को मुख्यमंत्री से रूबरू होने के लिए डेढ़ घंटा इंतजार करना पड़ा।
बाहर निकले विहिप नेताओं ने सपा नेताओं की जमकर तारीफ की। इस बैठक के बाद ही पूरे प्रदेश की राजनीति में भूचाल आ गया। सपा के ही तेज तर्रार और तुनक मिजाज मंत्री आजम खां ने रणनीति के तहत इस मुलाकात पर सपा मुखिया से अपनी नाराजगी छुपा नहीं पाये। सपा यह तो चाहती थी कि यह मुद्ïदा थोड़ा गर्म हो मगर यह कभी नहीं चाहती थी कि मुस्लिमों में यह संदेश जाये कि सपा विहिप नेताओं को कुछ छूट दे रही है। लिहाजा डैमेज कंट्रोल करते हुए विहिप की परिक्रमा पर रोक लगा दी गयी। इस रोक से भाजपा और सपा दोनों को फायदा था। भाजपा ने अगले दिन से ही कहना शुरू कर दिया कि यह रोक आजम खां के इशारे पर लगाई गयी है। भाजपा का यह हमला यह दर्शाने के लिए था कि सपा सरकार आजम खां और मुस्लिमों के दबाव में काम कर रही है।
भाजपा का यह दांव सपा के लिए बेहद फायदेमंद था। भाजपा जैसे जैसे सपा पर इस मुद्ïदे को लेकर हमलावर होगी वैसे वैसे मुस्लिम सपा की तरफ आकर्षित होंगे। मुस्लिमों को और लुभाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अगले ही दिन मुस्लिमों को विभिन्न सरकारी योजनाओं में बीस फीसदी आरक्षण की घोषणा कर दी। इस घोषणा से सपा को निश्चित रूप से फायदा मिलेगा।
उधर कांग्रेस और बसपा समझ गयी थी कि सपा का यह दांव उन्हें बहुत फायदा पहुंचा सकता है। लिहाजा यह दोनों दल इस बात को प्रचारित करने में लग गये कि चुनाव पास आते ही सपा और भाजपा मिलकर नूराकुश्ती कर रहे हैं।
इस सब हालातों के बीच अयोध्या में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। संघ और विहिप के सभी नेता इस मुद्ïदे को गरमाने में जुट गये हैं। इन हालातों से साफ है कि आगामी लोकसभा चुनाव के केन्द्र में एक बार फिर राम मंदिर ही रहेगा। देखना यह होगा कि राम नाम का सहारा भाजपा को फायदा पहुंचायेगा या फिर उसे सत्ता से राम-राम करवा देगा।