कितना बहादुर है आसाराम की गिरफ्तारी पर खुद की पीठ थपथपाने वाला मीडिया? : करीब 16-17 साल पहले की बात है. मैं उन दिनों ज़ी नेटवर्क के लिये रिपोर्टर था. एक नयी पीआर कंपनी के सीईओ ने मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की. मोबाइल फोन का जमाना नहीं था. पेजर हुआ करते थे. उसने कई बार मैसेज कर और ऑफिस के फोन पर बात करके मुझे बुलाया और कहा कि कुछ पर्सनल काम है. पहले तो मैंने सोचा, किसी खास असाइनमेंट के बारे में चर्चा करनी होगी. मैंने कहा, "ऑफिस आ जाओ" तो वो गिड़गिड़ा कर कहने लगा, "पारिवारिक मामला है वर्ना आपको तकलीफ न देता."
मैं उधेड़बुन में हां-ना करते उसके ऑफिस चला ही गया. आज भी याद है, कंपनी का नाम था 'मैडिसन मीडिया' और शख्स का नाम 'पिंटू शर्मा' था. चाय-पानी की औपचारिकता के बाद उसने लगभग ललकारते हुए एक चुनौती दी. कहा, "एक शख्स बहुत बड़ा क्रिमिनल है और मैं उसके खिलाफ सबूत भी दे सकता हूं. क्या आप अपने चैनल पर या कहीं भी, किसी भी मीडिया में उसके खिलाफ खबर दिखा या छपवा सकते हैं?"
मुझ पर कैमरे और गन माइक का जोश सवार था. मैंने कहा, "अपराधी कितना भी बड़ा क्यों न हो, मीडिया से उपर नहीं होता." उसने हंस कर कहा, "जनाब वो हस्ती है आसाराम बापू और उसने मेरे सगे भाई का अपहरण किया हुआ है." मैं सन्न रह गया.
फिर उसने मुझे बताया कि वो अमेरिका में रहने वाला एनआरआई है और अपने भाई को पाने के मकसद से ही भारत आया है. धीरे धीरे विस्तार से उसने ये भी बताया कि कैसे अमेरिका में पले-बढ़े और बढ़िया कंपनी में काम कर रहे उसके भाई को बापू के चेलों ने उसके भारत घूमने आने के दौरान अफीम-हेरोइन की लत डाल दी और आश्रम में ले जाकर कैसेट और किताबें बेचने के धंधे में लगा दिया. फिर कैसे वो अपने भाई को वापस लाया और उसका इलाज करवा रहा था कि बापू के चेलों ने उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर से दोबारा गायब करवा लिया.
जब वो साबरमती, गुजरात स्थित आसाराम के आश्रम गया तो उसके चेलों ने पिंटू को धक्का देकर इस धमकी के साथ भगा दिया कि अगर दोबारा दिखे तो भाई की लाश ही लेकर वापस जाओगे. उसने कई और लोगों से मेरी फोन पर बात भी करवायी जो साबरमती, गुजरात में आश्रम के बाहर अपने बच्चों को बाबा के चंगुल से छुड़ाने के लिये जुटे रहते थे. कइयों को तो अफीम-हेरोइन की बात मालूम भी नहीं थी. उन्हें लगता था कि बाबा ने 'जादू' से उनके बच्चे का 'ब्रेनवाश' कर दिया है.
मैं बड़े उत्साह से अगले दिन रिपोर्ट का सारांश लेकर अपने न्यूज हेड से अप्रूव कराने गया. उन्होंने मुझे घूर कर देखा और पूछा, "पागल हो गये हो क्या? इस शख्स के खिलाफ खबर लगाओगे? क्यों मेरी भी नौकरी खाने पर जुटे हो? तुम्हें मालूम नहीं क्या कि इसके प्रवचनों से ही हमारे ग्रुप के सभी चैनलों की शुरुआत होती है और इसके लिये हमारी कंपनी को लाखों रुपये मिलते है?"
मैं मन ही मन उन्हें कोसते हुए बाहर चला आया. फिर अगले चार-पांच दिनों में मैं कई अखबारों और प्रोडक्श्न हाउसों (उन दिनों न्यूज चैनल नहीं होते थे) के चक्कर लगा आया. मुझे भारी हैरानी हुई जब पता चला कि कोई भी अखबार या प्रोडक्शन हाउस आसाराम के खिलाफ खबर चलाने की हिम्मत नहीं रखता. वो भी नहीं, जिन्हें आसाराम का विज्ञापन नहीं मिलता. मैंने बेहद शर्मिंदा होकर पिंटू शर्मा से माफी मांगी.
बाद में जब टीवी चैनलों की संख्या बढ़ी और बापू की पकड़ मीडिया पर से कमजोर पड़ने लगी तो उसके गुरुकुल में हुई वारदात की खबरें जोर-शोर से उछलीं. मैंने पिंटू से संपर्क साधने की कोशिश की तो पता चला कि वो वापस अमेरिका चला गया है. आज जब इस खतरनाक अपराधी के जेल जाने की खबर मिली तो थोड़ी तसल्ली हुई, लेकिन जब चैनलों को इस गिरफ्तारी के लिये अपनी पीठ थपथपाते देखा तो हंसी आ गयी. उपर से 'ताकतवर' और 'निष्पक्ष' होने का दावा करने वाले ये स्वनामधन्य पत्रकार भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनका ये 'अहंकार' कितना खोखला है.
मुझ पर कैमरे और गन माइक का जोश सवार था. मैंने कहा, "अपराधी कितना भी बड़ा क्यों न हो, मीडिया से उपर नहीं होता." उसने हंस कर कहा, "जनाब वो हस्ती है आसाराम बापू और उसने मेरे सगे भाई का अपहरण किया हुआ है." मैं सन्न रह गया.
फिर उसने मुझे बताया कि वो अमेरिका में रहने वाला एनआरआई है और अपने भाई को पाने के मकसद से ही भारत आया है. धीरे धीरे विस्तार से उसने ये भी बताया कि कैसे अमेरिका में पले-बढ़े और बढ़िया कंपनी में काम कर रहे उसके भाई को बापू के चेलों ने उसके भारत घूमने आने के दौरान अफीम-हेरोइन की लत डाल दी और आश्रम में ले जाकर कैसेट और किताबें बेचने के धंधे में लगा दिया. फिर कैसे वो अपने भाई को वापस लाया और उसका इलाज करवा रहा था कि बापू के चेलों ने उसे रिहैबिलिटेशन सेंटर से दोबारा गायब करवा लिया.
जब वो साबरमती, गुजरात स्थित आसाराम के आश्रम गया तो उसके चेलों ने पिंटू को धक्का देकर इस धमकी के साथ भगा दिया कि अगर दोबारा दिखे तो भाई की लाश ही लेकर वापस जाओगे. उसने कई और लोगों से मेरी फोन पर बात भी करवायी जो साबरमती, गुजरात में आश्रम के बाहर अपने बच्चों को बाबा के चंगुल से छुड़ाने के लिये जुटे रहते थे. कइयों को तो अफीम-हेरोइन की बात मालूम भी नहीं थी. उन्हें लगता था कि बाबा ने 'जादू' से उनके बच्चे का 'ब्रेनवाश' कर दिया है.
मैं बड़े उत्साह से अगले दिन रिपोर्ट का सारांश लेकर अपने न्यूज हेड से अप्रूव कराने गया. उन्होंने मुझे घूर कर देखा और पूछा, "पागल हो गये हो क्या? इस शख्स के खिलाफ खबर लगाओगे? क्यों मेरी भी नौकरी खाने पर जुटे हो? तुम्हें मालूम नहीं क्या कि इसके प्रवचनों से ही हमारे ग्रुप के सभी चैनलों की शुरुआत होती है और इसके लिये हमारी कंपनी को लाखों रुपये मिलते है?"
मैं मन ही मन उन्हें कोसते हुए बाहर चला आया. फिर अगले चार-पांच दिनों में मैं कई अखबारों और प्रोडक्श्न हाउसों (उन दिनों न्यूज चैनल नहीं होते थे) के चक्कर लगा आया. मुझे भारी हैरानी हुई जब पता चला कि कोई भी अखबार या प्रोडक्शन हाउस आसाराम के खिलाफ खबर चलाने की हिम्मत नहीं रखता. वो भी नहीं, जिन्हें आसाराम का विज्ञापन नहीं मिलता. मैंने बेहद शर्मिंदा होकर पिंटू शर्मा से माफी मांगी.
बाद में जब टीवी चैनलों की संख्या बढ़ी और बापू की पकड़ मीडिया पर से कमजोर पड़ने लगी तो उसके गुरुकुल में हुई वारदात की खबरें जोर-शोर से उछलीं. मैंने पिंटू से संपर्क साधने की कोशिश की तो पता चला कि वो वापस अमेरिका चला गया है. आज जब इस खतरनाक अपराधी के जेल जाने की खबर मिली तो थोड़ी तसल्ली हुई, लेकिन जब चैनलों को इस गिरफ्तारी के लिये अपनी पीठ थपथपाते देखा तो हंसी आ गयी. उपर से 'ताकतवर' और 'निष्पक्ष' होने का दावा करने वाले ये स्वनामधन्य पत्रकार भी अच्छी तरह जानते हैं कि उनका ये 'अहंकार' कितना खोखला है.
लेखक धीरज भारद्वाज कई चैनलों में वरिष्ठ पदों पर काम कर चुके हैं और इन दिनों 'फेम इंडिया' मैग्जीन में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं.
sabhar- Bhadas4medial.com
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