Sakshatkar.com- Filmidata.com - Sakshatkar.org

इस संपादक के काले कारनामों से पूरा अजमेर और मीडिया वाकिफ है

तेरह साल मीडिया में काम करने के बावजूद एक वरिष्ठ साथी ने इतना सा सहयोग नहीं किया : आपके सामने होता तो आपके मुंह पर थूक कर जाता : अभी दो दिन पहले मैंने और मेरे रिश्तेदार अधिकारी ने दो गलती की...मेरे रिश्तेदार को अपनी गलती पर पछतावा होगा या नहीं...ये तो मैं नहीं जानता...लेकिन मुझे मेरी गलती पर कोई पछतावा नहीं...वे रिश्तेदार राजस्थान रोडवेज में अजमेर आगार में आगार प्रबंधक है और जयपुर के एक विधायक के छोटे भाई हैं...दो दिन पहले उनका परिवार जयपुर से अजमेर के लिए अजमेर आगार की बस में बैठकर रवाना हुआ...इसमें उनका निजी परिवार और आश्रित माँ के आलावा शायद एक दो लोग और थे...बस कंडेक्टर ने इस मामले की जानकारी सिन्धी कैंप से अजमेर आगार प्रबंधन को दे दी...
प्रबंधन ने अधिकारी के परिवार का मामला होने का मामला बताकर उन्हें लाने की अनुमति दे दी....रोडवेज में ऐसा आमतौर पर होता है...मैं बचपन से देखता आ रहा हूँ...बस के ड्राईवर ने चीफ मैनेजर से पुरानी खुन्नस निकालने के लिए अजमेर में एक आप नेता को फोन कर दिया...उसने बीच रास्ते में बस रोक कर हंगामा खड़ा कर दिया...फ़्लाइंग जाँच पहुंची तो 9 में से 5 लोगों के पास रोडवेज  कर्मचारियों को मुफ्त यात्रा के लिए मिलने वाले पास पाए गए...मामला मीडिया तक पहुँच गया...

मुझे बड़े भाई का फोन आया...जानकारी करने पर पता चला अजमेर में राजस्थान पत्रिका और दैनिक नवज्योति उस आप नेता को और उसकी खबरों को कोई तरजीह नहीं देते हैं...लेकिन दैनिक भास्कर में उसकी तगड़ी सेटिंग है....मैंने कुछ समय अजमेर भास्कर में सीनियर रिपोर्टर के तौर पर काम भी किया था....भास्कर में रोडवेज की खबर लिखने वाला रिपोर्टर मेरा मित्र था...लिहाजा मैंने उसे फोन किया तो उसने खबर डेस्क पर चले जाने का हवाला दिया...मैंने पूरे मामले की जानकारी लेकर अजमेर भास्कर के स्थानीय संपादक रमेश अग्रवाल को फोन कर पूरे मामले की हकीकत से अवगत कराया...

मैंने पूरी जिम्मेदारी लेते हुए अग्रवाल साहब से अनुरोध किया कि सर खबर पूरी तरह फर्जी है...अधिकारी के खिलाफ यह षड्यंत्र रचाया गया है...मैंने उन्हें बहुत बड़ा मामला नहीं होने की बात कहकर खबर रोकने का आग्रह किया...संपादक ने कहा खबर कभी रोकी नहीं जाती...मैं उनके तर्क से सहमत हुआ...अख़बार की गरिमा और मेरा पारिवारिक मामला होने का हवाला देकर मैंने उन्हें खबर में सही तथ्य छापने का निवेदन किया...उन्होंने मुझे पूरी मदद के लिए आश्वस्त किया...इस सिलसिले में देर रात तक मेरी उनसे तीन बार फोन पर बात भी हुई...उन्होंने आश्वस्त किया की मैं देख लूँगा, तुम चिंता मत करो...

अगले दिन सुबह खबर छप गई...इनकी एडिटिंग की हालत देखिए रोडवेज के चीफ मैनेजेर को निक नेम में सीएम बुलाते हैं...इन बुद्धी के मारों ने सीएम वसुंधरा राजे लिख दिया...कभी खबर पढ़ते तो एडिट करते ना...खबर जो छपी आपके सामने रख रहा हूँ... आप खुद अंदाजा लगाना...खबर कितनी फर्जी है...जिस तरह ख़बर छपी, बेहद दुख हुआ...तेरह साल मीडिया में काम करने के बावजूद एक वरिष्ठ साथी ने इतना सा सहयोग नहीं किया...जब मुझे और आप सबको पता है इन संस्थानों में खबरों के साथ क्या होता है...जब मैंने उन्हें फोन किया तो बचने के लिए तर्क था...स्टेट हेड का फोन आ गया था...मैंने कहा- सर आप मुझे फोन पर बता देते...मैं स्टेट हेड से बात कर लेता...इस पर उन्होंने मुझ पर अपनी अफसरी झाड़ते हुए कहा...अब क्या तुम मुझे निर्देश दोगे...मैंने भी तपाक से जवाब दे दिया "निर्देश क्या, आपका जूनियर पत्रकार होने और विनम्र अनुरोध करने के बावजूद मेरे साथ जो किया है...अगर अभी मैं आपके सामने होता तो आपके मुंह पर थूक कर जाता"

हो सकता है मैंने गलत किया हो...कुछ लोगों को बुरा भी लगेगा...लेकिन मुझे इसका ना तो कोई मलाल है ना ही कोई रंज...भले ही इसके लिए मुझे कुछ भी भुगतना पड़े...ऐसे घटिया लोगो को सबक सिखाने का यही तरीका है...इस संपादक के काले कारनामों से पूरा अजमेर और मीडिया वाकिफ है...मालिकों के सामने दया का पात्र बनकर ये अजमेर में बरसों से जमा बैठा है...इसने ऑफिस में अपने तीन दलाल पाल रखे हैं और बेचारे जूनियर रिपोर्टरों से रिपोर्टिंग के बजाय खुद के धंधेबाजी के काम करवाते हैं...एक सटोरिये के पैसों से शहर में युवराज रेसीडेंसी में क्या कारनामे किए हैं सबको पता है...हमको आज भी खाने के फाके हैं और साहब की फेक्टरियाँ चल रही हैं...इनके कारनामों पर तो पूरी किताब लिखी जा सकती है...आजकल अपने चेलो से एक प्रेस क्लब बनवाकर खुद अध्यक्ष बनकर बैठे हैं...भास्कर प्रबंधन है कि धृतराष्ट्र बना बैठा है...

खैर, ये पहला मामला नहीं...गालियाँ सुनने के आदी है ये लोग तो...भास्कर में काम करने के दौरान मेरी कई ख़बरें रोकने पर इनने और इनके एक चेले संतोष गुप्ता ने कई बार गलियाँ सुनी थी...आप लोग यह मत समझना कि इसने मेरे कहने पर खबर नहीं रोकी तो में बदला लेने के लिए ऐसे लिख रहा हूँ...सवाल यह है बरसों से मीडिया में होने के बावजूद एक पत्रकार अपने साथी पत्रकार के पारिवारिक मामलों में इतना भी सहयोग नहीं कर सकता तो क्या मतलब इन भड़वों को सर-सर करने का...सुन लेना भड़वों मैंने शान से और पूरी ईमानदारी से पत्रकारिता की है...मैं किसी के बाप से नहीं डरता हूँ...तुम जैसे भांड मेरा कुछ नहीं उखाड़ सकते...मैं तो फ़कीर हूँ...खोने को मेरे पास कुछ नहीं...तुम्हारी तो दलाली की दुकाने है...सोच लेना...जो नेता मुझ से डरते थे तुम लोगों को उनके आगे गिड़गिड़ाते देखा है मैंने...कहो तो नाम भी बता दूं...इस दुनिया में मैं भगवान के बाद सिर्फ श्रीपाल शक्तावत से डरता हूँ...वो पत्रकारिता के असली मर्द हैं...तुम तो दल्ले हो दल्ले (यह शब्द सबके लिए नहीं है...उसके लिए ही है जिनकी मैं बात कर रहा हूँ...अजमेर की पत्रकारिता में कई अच्छे लोग भी हैं)
लेखक कमलेश केशोट राजस्थान में वरिष्ठ पत्रकार हैं
Sabhar- Bhadas4media.com.