कहते है वेब जर्नलिज्म ज़माना है मैं भी उसी ही गति में २०१० से शुमार हो गया। पिछले पंद्रह सालो से जर्नलिज्म में जूते घिस रहा हू । वैसे तो जर्नलिज्म की हालात कमजोर से नजर आती है। अभी पिछले काफी सालो से मुम्बई में रहकर फ्रीलान्स जर्नलिज्म कर रहा हू । मगर डेल्ही और मुम्बई के जर्नलिज्म में काफी अंतर नजर आता है। फिर सोचता यार इतनी स्टडी क्यों की।
डेल्ही के जर्नलिज्म की बात ही कुछ और नजर आती है। मगर फर्जी पत्रकारों की लंबी कतार हर जगह लगी है। मजे की बात ये है कि ये फर्जी पत्रकार किसी पेपर , टीवी चैंनल , ऑनलाइन पोर्टल से नहीं जुड़े है। फिर भी पत्रकार का तमगा लटकाये घूमते है। पूछो तो कहते है हम रिपोर्टर है।
एडिटर
सुशील गंगवार
साक्षात्कार.कॉम
डेल्ही के जर्नलिज्म की बात ही कुछ और नजर आती है। मगर फर्जी पत्रकारों की लंबी कतार हर जगह लगी है। मजे की बात ये है कि ये फर्जी पत्रकार किसी पेपर , टीवी चैंनल , ऑनलाइन पोर्टल से नहीं जुड़े है। फिर भी पत्रकार का तमगा लटकाये घूमते है। पूछो तो कहते है हम रिपोर्टर है।
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