पत्रकारिता की दुनिया में भारत के सर्वोच्च शैक्षणिक संस्थान 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन' (IIMC) द्वारा दो दिवसीय मीडिया महोत्सव का आयोजन 16 व 17 फरवरी को किया गया। इस दौरान हिंदी न्यूज चैनल 'आजतक' के मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद ने न केवल छात्रों को संबोधित किया, बल्कि समाचार4मीडिया के डिप्टी एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा के साथ ‘गुफ्तगू’ सेशन में खुले दिल से बात की, इस दौरान उन्होंने बड़ी ही बेबाकी से कई सवालों के जवाब भी दिए।
छात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जीवन में इससे बड़ा सम्मान नहीं हो सकता कि जहां से आप पढ़कर निकले हों, वहीं आप अतिथि बनकर कार्यक्रम को संबोधित करें। उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप सभी छात्र भी एक सपना देखें कि 20 साल बाद जब यहां इसी तरह का कोई कार्यक्रम हो रहा हो तो आप अतिथि बनकर आएं। उन्होंने कहा कि जीवन में सपने देखना बहुत जरूरी होता है क्योंकि वे सच भी होते हैं, यदि आप में उसे पूरा करने की लगन और मेहनत करने की क्षमता हो तो।
उन्होंने कहा कि मैं आईआईएमसी में बहुत ही छोटी जगह दुमका से आया था, जो इन दिनों झारखंड में है और तब यह बिहार में था। तब यहां कोई जानने वाला नहीं था। दिल्ली में पहली बार मैं आईआईएमसी का टेस्ट देने आया था और इसके बाद से जो कुछ भी आज मैं हूं वो मेरी मेहनत, लगन और गुरुजनों का आशीर्वाद है। इसलिए कहना चाहता हूं कि ईमानदारी और मेहनत से काम करें तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
'समाचार4मीडिया' के डिप्टी एडिटर अभिषेक मेहरोत्रा ने सुप्रिय प्रसाद से उनके 22 साल के सफर पर सवाल पूछा कि ये यात्रा कैसी रही, तो उन्होंने बताया कि पत्रकारिता की शुरुआत उन्होंने एक स्ट्रिंगर के तौर पर की थी। 1991 में जब बिहार के चुनाव हुए तो उन्हें अचानक से पत्रकारिता का शौक चढ़ा और उसी साल उन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी।
उन्होंने आगे बताया, ‘तब मैं 'प्रभात खबर' में स्ट्रिंगर के तौर पर जुड़ा था। इसी दौरान दुमका में लालकृष्ण आडवाणी को बहुचर्चित रथयात्रा के चलते गिरफ्तार कर रखा गया था, जिसे कवर करने देश भर के पत्रकार वहां आए हुए थे। तब कई पत्रकारों से मेरी मुलाकात हुई और पत्रकारिता को करीब से देखा। इसके बाद 1994 में मैं दिल्ली आ गया और पत्रकारिता के प्रशिक्षण के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट आफ मास कम्युनिकेशन (आईआईएमसी) में दाखिला लिया। 1995 में अपना कोर्स खत्म करने के बाद मैं 'आजतक' के साथ जुड़कर उसकी लॉन्चिंग टीम का सदस्य बन गया। यहां काम करने के बाद मैं 2007 में 'न्यूज-24' से जुड़ गया और इस चैनल को लॉन्च करवाया। यहां मैं चार साल रहा और इसके बाद दोबारा से मैं 'आजतक' में लौट आया।
क्या आपके जमाने में भी इंटर्नशिप के दौरान काफी मेहनत करनी पड़ती थी?
पहले तो कहना चाहूंगा कि जब भी आप किसी प्रोफेशनल संस्था में दाखिला लेते हैं तो आपका उद्देश्य पूरी तरह से स्पष्ट होना चाहिए और मेहनत करनी चाहिए, क्योंकि शॉर्ट कट जैसै ऑप्शन सफलता की ओर नहीं ले जाते हैं। मेहनत करके आगे बढ़ सकते हैं, कुछ सीख सकते हैं या फिर आप सिर्फ नंबरों के लिए ही पास हो सकते हैं। जब मैं आईआईएमसी में था, तब बहुत सारे लोग बहुत कुछ सीखना चाहते थे, क्योंकि उन दिनों कोर्स का समय भी बहुत कम होता था और वह भी सिर्फ नौ महीने का। उन दिनों हायर एजुकेशन की शुरुआत नहीं हुई थी और इसलिए कम समय में ज्यादा से ज्यादा सीखने की इच्छा होती थी। उन दिनों प्रिंट और रेडियो का जमाना था और मैं दोनों ही चीजें सीखना चाहता था। मेरी इंटर्नशिप पहले ‘राष्ट्रीय सहारा’ अखबार में हुई थी। मैं राष्ट्रीय सहारा में दोपहर 3 बजे जाता था और रात के 12 बजे तक वहां रहता था, लेकिन यहां 12 बजे के बाद इंटर्न को घर जाने के लिए बड़ी दिक्कतें होती थीं। बस स्टैंड तक पहुंचने का कोई साधन नहीं होता था। कोई ड्रॉप नहीं मिलती थी। इसलिए मुझे रात के दो बजे तक रुकना पड़ता था, क्योंकि कंपोजिटर इसी समय पर वहां से निकलते थे और वे बस स्टॉप तक ड्रॉप कर देते थे, जहां मुझे तीन घंटे बाद यानी पांच बजे सर्विस बस मिलती थी, जोकि मुझे साढ़े पांच बजे छोड़ देती थी। रात के तीन घंटे का समय मुझे मजबूरन बस स्टॉप पर भी बिताना पड़ता था। सुबह साढ़े पांच बजे से 10 बजे तक मैं घर पर रहता था और इसके बाद मैं ऑल इंडिया रेडियो में इंटर्नशिप के लिए निकल जाया करता था, क्योंकि 2 बजे एक कार्यक्रम के लिए मुझे इंटर्न के तौर पर काम करना होता था और ऐसा इसलिए करता था क्योंकि मैं चाहता था कि अखबार और रेडियो के काम को मैं बारीकी से सीख सकूं।
आईआईएमसी और टीवी मीडिया है तो दिल्ली में, ऐसे में दिल्ली के बाहर से यानी छोटे-2 शहरों या फिर गांव के बच्चों के लिए क्या स्कोप है?
मेरा मानना है कि इसमें आईआईएमसी की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका है। लोग छोटे-छोटे शहरों से निकलकर आईआईएमसी में आते हैं और धीरे-धीरे बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं और वह इसलिए क्योंकि आईआईएमसी आपको भरोसा देता है कि आप कुछ कर सकते हैं। जब आप आईआईएमसी से पढ़कर निकलते हैं तो आपको लगता है कि आपके अंदर कुछ टैलेंट है और यही वजह है कि यहां देश के हर प्रांत से लोग हैं।
मीडिया में आज सफलता कैसे हासिल की जा सकती है, क्योंकि आजकल शॉर्टकट का जमाना है?
देखिए, शॉर्टकट से कुछ भी हासिल नहीं होता है। शॉर्टकट से जो भी चीज हासिल होती है वह शॉर्टटर्म के लिए होती है। पत्रकारिता में जो कुछ भी आपने सीखा है वो आपके सामने होता है। अगर आपको लिखना या फिर बोलना नहीं आता तो कुछ भी छिप नहीं सकता, फिर चाहे आप कितनी भी सिफारिश लगा लो।
आप टीवी इंडस्ट्री में शुरू से हैं, तमाम प्लेटफॉर्म पर टीवी कंटेंट को लेकर आलोचनाएं होती रहती हैं। तो फिर टीवी का भविष्य क्या है?
जहां अच्छाई होती है, वहां बुराई भी होती है। समय के साथ सबकुछ बदलता है, लेकिन कुछ लोग अभी भी समझते हैं कि पहले जैसे अखबार निकलता था, पहले जैसे खबरें बनती थीं वैसे ही आज भी है। लेकिन वे ये मानने को तैयार नहीं कि समय बदल गया है। समय के साथ खबर सुनने वाले, खबर देखने वाले और खबरों का तरीका सबकुछ बदल गया है। अब मोबाइल का जमाना है और लोग कम समय में बहुत सारी चीजें जानना चाहते हैं इसलिए इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए। लोगों को ‘इन डेप्थ’ और ‘इनवेस्टिगेशन’न्यूज ज्यादा अच्छी लगती है और यहीं दो चीजें लोग ज्यादा देखना पसंद भी करते हैं।
क्या सोशल मीडिया टीवी की जगह ले रहा है?
नहीं, सोशल मीडिया टीवी की जगह इसलिए नहीं ले सकता, क्योंकि उसके साथ सबसे बड़ा संकट है क्रेडिबिलिटी यानी ‘भरोसा’ और जब तक भरोसा नहीं होगा तब तक कोई भी प्लेटफॉर्म सफल नहीं हो सकता। लोगों को आपकी खबर पर भरोसा होना चाहिए कि जो आप खबर दे रहे हैं वह सही है।
आप हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही चैनलों को हेड करते हैं। ऐसे में किस तरह की स्ट्रैटिजी आपके दिमाग में चलती है?
इसके लिए हर समय प्लानिंग करनी पड़ती है। जैसे इस इंटरव्यू के दौरान मुझे मिल रही खबरों में कावेरी नदी का विवाद ‘इंडिया टुडे’ के लिए बड़ी खबर है और यूपी का बजट ‘आजतक’ के लिए। खबर और ऑडियंस का उससे जुड़ाव समझना होता है।
संपादक के तौर पर आप लंबे समय से टीवी मीडिया से जुड़े हुए हैं, क्या आप पर कभी पॉलिटिकल, मैनेजमेंट या फिर किसी भी तरह का दबाब आया है?
देखिए, जब आप किसी विश्वसनीय संस्था के साथ जुड़े हों तो इस तरह का दबाब नहीं आता है। मैंनें दो जगह काम किया है और दोनों ही जगह किसी भी तरह के दबाब में काम नहीं किया। रही बात पॉलिटिकल दबाब की तो वो भी मैंने कभी नहीं देखा, लेकिन कई बार सरकार की ओर से प्रेस रिलीज आती है, किसी कार्यक्रम को कवर करने की रिक्वेस्ट आती है फिर चाहे वह पीएम का कार्यक्रम ही क्यों न हो। उसे सिर्फ कवर करने करने की ‘रिक्वेस्ट’ कह सकते हैं, न कि उसे ‘दबाब’ कहा जाना चाहिए। मैं यहां स्पष्ट तौर पर कहता हूं कि सरकार की ओर से मीडिया पर कोई दबाव नहीं है।
यानी, सरकार का किसी भी चैनल पर कोई ऑफिशयल दबाब नहीं है?
बिलकुल नहीं, कभी कोई दबाब नहीं रहा। हम पत्रकार भले ही व्यक्तिगत रूप से किसी दबाव में आ जाएं, लेकिन सरकार का कोई दबाव नहीं होता। आजतक पर किसी भी खबर के लिए सरकार ने कोई दबाव नहीं डाला कि वो चलाई जानी चाहिए या फिर नहीं।
टीवी में इनोवेशन की बहुत ही जरूरत होती है और आपने ‘न्यूज24’ में ‘न्यूज शतक’ का फॉर्मेट शुरू किया था। ये आइडिया आपको कहां से आया?
जब मैंने ‘न्यूज24’ जॉइन किया था, तो मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि उस समय आजतक, जी न्यूज, स्टार न्यूज जैसे बहुत से जमे जमाए चैनल थे। इसलिए कुछ नया इनोवेशन करने की जरूरत थी, ताकि कुछ अलग दिख सकें। यह जरूरी है कि टीवी के लिए कि आप कुछ नया लाते रहें, तभी ऑडियंस के साथ इंगेजमेंट बना रहता है। लोग बिजनेस न्यूज को, बजट को बहुत ही बोरिंग मानते थे, खास तौर पर हिंदी चैनल पर देखना। इसलिए हमने ‘आजतक’ पर ‘बजट बाजार’ शुरू किया और इसे इस तरह से पेश किया कि लोग इससे जुड़ सकें। इसका फीडबैक बहुत ही अच्छा आया।
टीवी को नया आयाम देने वाले वरिष्ठ पत्रकार एसपी सिंह के साथ आपने काम किया है, क्या उनके साथ का कोई संस्मरण याद है?
शुरुआती दिनों में मैनें एसपी सिंह के साथ काम किया। उनके अंदर सबसे बड़ी खासियत खबरों को लेकर उनका पैशन थी। मैंने उनके अंदर खबरों की जुनूनियत को देखा है। उस वक्त दर्जनों अखबार पढ़कर उसे अंडरलाइन कर मीटिंग में अहम बिंदुओं को बताना, उनकी खासियत थी। उसके बाद मैंने उदय शंकर जी, क़मर वहाद नक़वी जी और शाजी ज़मा जी के साथ भी काम किया। सबकी अपनी अपनी यूएसपी है।
‘आजतक’ में एपी, केपी और एसपी की तिगड़ी बहुत मशहूर है। इस बारे में कुछ बताइए?
अरुण पुरी जी और कली पुरी जी दोनों ही प्रोफेशनल हैं और प्रोफेशनल लोगों के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं होती है। न्यूज को लेकर दोनों बहुत ही पैशन रखते हैं।
आजकल एजेंडे की पत्रकारिता चल रही है, इसे आप किस तरह से देखते हैं?
देखिए, पक्ष की राजनीति और विपक्ष की राजनीति पत्रकारिता नहीं है। पत्रकारिता का मूल सिद्धान्त ही निष्पक्ष पत्रकारिता है। इसलिए पत्रकारों को निष्पक्ष होना चाहिए। पत्रकारिता कभी ये नहीं सिखाती कि आप किसी के खिलाफ रहें या फिर किसी के साथ रहें। बल्कि खबर के दोनों पक्षों को दिखाएं और ‘आजतक’ व ‘इंडिया टुडे’ की हमेशा यही कोशिश भी रही है।
आपको लगता है कि क्या सोशल मीडिया पर ‘एक्टिव’ रहने से पत्रकार ज्यादा ‘अग्रेसिव’ हो गए हैं, कई बार अतिवादिता में लिख जाते हैं?
इस तरह के काम करने वाले लोगों ने पत्रकारिता को कुछ हद तक नुकसान पहुंचाया है। आप वोट देते हैं, ऐसे में हर किसी का झुकाव किसी न किसी के प्रति रहता ही है, फिर चाहे मैं ही क्यों न हूं। लेकिन सोशल मीडिया पर इस तरह की चीजें जाहिर करके धीरे-धीरे वह पक्षपातपूर्ण पत्रकार में बदल जाता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि जब आप पत्रकारिता करें तो सिर्फ एक पत्रकार को तौर पर ही सोचें।
‘ज्योतिष’ और ‘बाबा’ के शो टीआरपी लाते हैं, पर अक्सर इन्हें लेकर चैनलों पर कटाक्ष होता है, क्या कहना चाहेंगे आप?
मैं अपने चैनल के बारे में ही बात करता हूं। दरअसल, आजतक पर एक शो आता है ‘आपके तारे’ और वह भी 20 मिनट का। चूंकि इस पर लोगों का विश्वास है और इसे लोग देखना भी चाहते हैं। इसलिए यह दिखाना जरूरी हो जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि चैनल पर एक या दो घंटे का इस तरह का कोई शो प्रसारित हो रहा है।
‘सास-बहू’ वाले शो भी क्या न्यूज कंटेंट हैं?
टीवी पत्रकारिता में पहले दौर का जो बदलाव हुआ था, उस बदलाव के साथ ही इस तरह के प्रोग्राम शुरू हुए थे। उस समय एक शो आता था ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ उस जमाने में उसका बहुत क्रेज था। हम लोगों ने विचार किया कि कोई ऐसा प्रोग्राम होना चाहिए जो यह बताए कि एंटरटेनमेंट चैनल पर ऐसे शोज में आगे क्या होगा, क्योंकि लोग जानना चाहते थे और इस तरह के प्रोग्राम देखने वाले दर्शक भी अलग हैं। मुझे याद है कि जब बालिका वधु में आनंदी को गोली लगी थी, तो हमारे पास कितने कॉल्स आए थे, जो ये जानना चाहते थे कि अब आगे क्या होगा? टीवी सीरियल्स के बारे में जानकारी देना कोई बुराई नहीं है।
आपकी वर्किंग स्टाइल जानकर थोड़ा सा हैरान हूं, क्योंकि इतनी मजबूत टीम होने के बावजूद आप लगातार अपने केबिन में बैठकर स्क्रिप्ट्स पढ़ते हैं, कंटेंट सुधारते हैं, ऐसा क्यों?
(मुस्कराते हुए) ऐसा इसलिए है क्यों कि मुझे कोई और काम आता ही नहीं है। मैं सिर्फ यही काम कर सकता हूं। मैंनें आजतक जितना काम सीखा है, उतना जरूर करता हूं।
इस दौर में जब टीवी चैनल्स एग्रीकल्चर को लेकर कोई प्रोग्राम नहीं करता, आपने एक शो किया था अपने चैनल पर। क्या आपको नहीं लगता कि जिम्मेदार संपादक के तौर पर आपको एग्रीकल्चर बीट को प्रमोट करना चाहिए?
नहीं, लोग ऐसा सोचते हैं। मैंने ‘गांव कनेक्शन’ प्रोग्राम गांव के लोगों से जुड़ने के लिए शुरू किया था, लेकिन बड़ी ही आश्चर्य की बात है कि गांव के लोग इस तरह के प्रोग्राम नहीं देखना चाहते हैं। वे देखना चाहते हैं कि दिल्ली में क्या हो रहा है, बाजार कैसे खुल रहे हैं, क्या ट्रेंड में हैं आदि-आदि।
यू-ट्यूब के जमाने में तमाम चैनल अब इस प्लेटफॉर्म से जुड़ रहे हैं। ऐसे में आपका एक राष्ट्रवादी चैनल 'भारत तक' लॉन्च हुआ, तो यह किस तरह का राष्ट्रवादी चैनल है?
मैं राष्ट्रवाद को बुरा नहीं मानता हूं। चैनल पर देश के सभी सकारात्मक पहलुओं के बारे में जानकारी दी जा रही है। ‘वंदे मातरम’ शो हो या फिर कारगिल के वीरों की कहानी, हम इसके बारे में भी युवाओं को जानकारी दे रहे हैं। देश के लिए कुर्बान होने वालों के बारे में बताना क्या बुरी बात है?
आपके यहां एंकर्स की फौज है, कैसे मैनेज करते हैं आप?
एक अच्छा एडिटर वो होता है, जो टीम में शामिल लोगों से उनकी योग्यता के अनुसार काम करा सके। यानी जिसकी जो खासियत है कि उसे वैसा ही काम देना चाहिए। जैसे हमारे यहां श्वेता सिंह और अंजना ओम कश्यप दोनों ही एंकर्स की खासियत अलग-अलग है। श्वेता सिंह श्वेत पत्र अच्छा बना सकती है, जबकि अंजना ओम कश्यप डिबेट शो अच्छा कर सकती है। यहां एक दिलचस्प बात बता दूं कि पहले लड़कियों को पॉलिटिकल डिबेट या पॉलिटिकल खबरों की एकंरिंग से दूर रखा जाता था, लेकिन पहली बार इसकी शुरुआत ‘आजतक’ ने ही की। ‘आजतक’ ने ही इस धारणा को तोड़ा और सभी महिला एंकर्स को ट्रेन्ड किया, ताकि वे हर तरह की न्यूज कर सकें।
फेक न्यूज का बोलबाला है, ऐसे में कैसे होती है खबरों की पुष्टि?
हमारी पूरी कोशिश रहती है कि हर खबर की पूरी जांच की जाए, पुष्टि के बाद ही खबर प्रसारित करते हैं। एकाध गलत खबर कभी चल गई थी, वाकई बहुत अफसोस हुआ था तब। पर रिपोर्टर्स से लेकर डेस्क के साथी बहुत मेहनत करते हैं हर खबर की पुष्टि के लिए।
न्यूज कंटेंट में आजकल मसाला मिक्स किया जा रहा है, आप ही के एक शो में तीन एंकर्स वादियों में रोमांटिक गानों की धुन के साथ एंकरिंग कर रही थी, थोड़ा स्पष्ट कीजिए?
टीवी मीडिया एक विजुअल मीडिया है, ये समझना बहुत जरूरी है। ऐसे में स्पॉट पर जाकर रिपोर्टिंग ही इसकी यूएसपी है। सॉफ्ट स्टोरीज को लेकर कई तरह के इनोवेशन होते हैं, इसमें कोई बुराई नहीं है। ठंड की खबर में क्या सिर्फ नक्शे और बर्फ ही दिखाते रहें,ऑडियंस कुछ अलग चाहता है। प्रस्तुतिकरण के साथ वो एक अहम खबर भी थी, जब भीषण ठंड पड़ रही है, तो सब उस खबर को देखना चाहते थे, ऐसे में कुछ अलग करना था।
चैनल में काम का दबाब तो रहता है, लेकिन आप पर सबसे ज्यादा दबाब कब होता है?
काम करते रहने में हमेशा मजा आता है और जब ज्यादा काम हो तो और भी मजा आता है। पर जब काम नहीं होता है तो स्ट्रैस्ड फील करता हूं।
एक पत्रकार-संपादक अपने परिवार को कम समय दे पाता है, तो ऐसे में क्या आप अपने परिवार को समय दे पाते हैं, कैसे और कब?
परिवार को समय देना तो काफी मुश्किल होता है, क्योंकि जब मैं देर रात ऑफिस से घर आता हूं, तो बेटी सो रही होती है इसलिए परिवार के साथ कम वक्त ही बिता पाता हूं। हमारी छुट्टी शनिवार और रविवार को होती है, लेकिन फिर भी मैं अक्सर शनिवार को ऑफिस जाता हूं। रविवार को मैं छुट्टी पर रहता हूं, लेकिन इस दिन भी मैं घर पर खबरों को मॉनिटर करता रहता हूं कि कहां क्या चल रहा हैं। मेरे बेडरूम में भी दस टीवी लगे हैं। फिलहाल परिवार को भी अब इसकी आदत हो गई है।
बॉलिवुड फिल्मों में आपको कितनी रुचि है, कौन सी फिल्म आपने हाल ही में देखी?
फिल्में मैं वही देखता हूं जो चर्चा में रहती है, हाल ही में मैनें ‘पद्मावत’ देखी।
‘आजतक’ का शो थर्ड डिग्री काफी लोकप्रिय शो है, एक गेस्ट के सामने तीन धाकड़ एंकर्स, क्या ये न्यायसंगत है?
देखिए, यह शो अलग-अलग समय पर अलग-अलग लोग करते हैं। एक समय था जब हमने यह शो किया तो तीन एंकर होते थे। इसके बाद हमने शुरू किया ‘ऊपर वाला देख रहा है’ जिसमें कोई एंकर ही नहीं होता था। इसमें एक्सपर्ट बैठा दिए जाते थे और कहा जाता था अब आप लोग बात करें। जो टीम इस पर काम करती है वो ये सोचती कि शो को कैसे आगे ले जाया जाए, ताकि वही चीज जो पहले तीन एंकर के साथ दिखी, अब थोड़ा अलग फॉर्मेट में नजर आए।
ऐसा क्यों होता है, जब रिक्रूटमेंट के दौरान स्टूडेंट्स रिजेक्ट हो जाते हैं और उन्हें बड़ा अवसर नहीं मिल पाता?
यहां बताना चाहूंगा कि शुरुआती स्तर पर पहले तो आपकी हिंदी और अंग्रेजी अच्छी होनी चाहिए। ये बहुत जरूरी होता है कि ट्रांसलेशन भी अच्छा होना चाहिए, क्योंकि आप जिस क्षेत्र में आए हैं उसकी तैयारी करते रहना चाहिए। और हां, जिस विषय पर आपकी रुचि है, फिर चाहे वह साइंस हो या फिर स्पोर्ट्स आदि, उस पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए और उसके लिए खुद को तैयार करना चाहिए। स्पेशलाइजेशन का जमाना है, यही आपकी यूएसपी है।
Sabhar- http://samachar4media.com/interview-of-supriya-prasad-managing-editor-aajtak