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चंडीगढ़ जनसत्ता के पच्चीस बरस पूरे, रजत जयंती पर पुनर्मिलन समारोह





                                                             -महेंद्र सिंह राठौड़

छह मई, 1987 को चंडीगढ़ से जनसत्ता अखबार को निकले छह मई, 2012 को पूरे पच्चीस साल हो गए। जाहिर है यह दिन अखबार के लिए विशेष था। शुरू के बहुत वर्षों तक इस दिन विशेष आयोजन भी होता रहा लेकिन सिलसिला टूटा तो टूट ही गया। हर साल यह दिन आता है लेकिन आयोजन नहीं होता। वक्त-वक्त की बात है। अखबार से जुड़े रहे कुछ लोग, जिनके मन में आज भी जनसत्ता के प्रति वही  आदर-सम्मान है और उनका दिल इसके लिए अब भी वैसे ही धड़कता है जैसा यहां काम करने के दौरान धड़कता था। 
ऐसे कुछ लोगों के प्रयास से इस बार आयोजन हुआ तो सभी इसके कायल हुए बिना नहीं रह सके। इन लोगों में कुछ अच्छे राजनीतिक मुकाम पर हैं या मीडिया में सम्मानित पदों पर हैं। छह मई, रविवार को स्थानीय प्रेस क्लब चंडीगढ़ में रजत जयंती समारोह का आयोजन किया गया। इसका मकसद अखबार में रहे उन लोगों को एक जगह एकत्रित करना था जो कभी न कभी चंडीगढ़ संस्करण में काम कर चुके थे और अब किसी दूसरे शहर, विदेश या मीडिया से इतर अन्य क्षेत्र में है। 
यह बेहद मुश्किल काम था लेकिन जज्बा था कुछ नायाब करने का, सब लोगों को एक दिन एक साथ एक मंच पर लाने का तो सब मुश्किलें दूर हुई। ऐसा शानदार आयोजन हुआ कि किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। बाहर से आने वालों के लिए कमरे तक आरक्षित रखे गए थे। आमंत्रित लोगों को सपरिवार बुलाया गया था। प्रेस क्लब में रजत जयंती समारोह ने माहौल जैसे जनसत्तामय बना दिया। साठ से ज्यादा लोग आए, एक दूसरे से मिले, पुराने दिनों की याद ताजा की। 
ठीक उसी तरह जैसे स्कूल-कालेज या विश्वविद्यालय में बरसों बाद कोई पुनर्मिलन समारोह हुआ करता है लेकिन मीडिया क्षेत्र में ऐसा अक्सर नहीं सुना जाता। फिर पच्चीस साल, बहुत लंबा सफर है। याद नहीं आता कि किसी समाचार पत्र में ऐसा आयोजन हुआ होगा। एक मायने में जनसत्ता ने फिर अलग मिसाल कायम की जैसा कि इसने अपने नाम, स्थापना और उद्देश्य से की। 
आयोजन में साठ से ज्यादा लोग ही पहुंच सके जबकि सौ से ज्यादा लोगों को आमंत्रित किया गया था। इनमें कुछ ने आने की सहमति भी दी थी लेकिन ऐन मौके पर किसी अपरिहार्य कारण से नहीं आ सके तो न पहुंच पाने के लिए खेद जताया। यहां किसी को सम्मानित नहीं किया जाना था, यहां विशेष पार्टी भी नहीं थी बावजूद इसके जितने भी लोगों से संपर्क किया वे आने को सहर्ष तैयार हुए। 
पच्चीस साल पूरे होने पर आयोजन का विचार चंडीगढ़ जनसत्ता में ही वरिष्ठ संवाददाता रहे और अब हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला के मीडिया एडवाइजर रामसिंह बराड़़ का था। इसे मूर्त रूप देने में वरिष्ठ संवाददाता रहे और अब आज समाज अखबार के एडीटर (न्यूज) बलवंत तक्षक, मुख्य उपसंपादक रहे और वर्तमान में प्रथम इंपेक्ट पत्रिका में प्रबंध संपादक रोशनलाल शर्मा, जनसत्ता चंडीगढ़ के स्थानीय संपादक  मुकेश भारद्वाज, डिप्टी न्यूज एडीटर वंदना शर्मा और मुख्य उपसंपादक राकेश राकी और अन्य लोगों का था।  
कार्यक्रम में जनसत्ता के कार्यकारी संपादक श्री ओम थानवी और इंडियन एक्सप्रेस के स्थानीय सपादक श्री विपिन पब्बी प्रमुख थे। इसके अलावा ईशमधु तलवार, राजीव मित्तल, अजय सेतिया, प्रदीप पंडित, सुरेंद्र अवस्थी, विनय भागर्व, जगविंदर पटियाल और मुकेश अग्निहोत्री समेत साठ से ज्यादा लोग थे जिनमें से कुछेक को छोड़ बाकी किसी न किसी रूप में मीडिया से ही जु़ड़े हैं।
 कार्यक्रम के शुरू में जनसत्ता के दिवंगत साथियों की स्मृति में दो मिनट का मौन रखा गया। इनमें जनसत्ता के संस्थापक और प्रधान संपादक श्री प्रभाष जोशी, चंडीगढ़ में मुख्य संवाददाता रहे श्री विद्यासा्गर, वरिष्ठ संवाददाता श्री राकेश कोहरवाल, वरिष्ठ उपसंपादक रहे श्री केशवानंद ममगाई, मुख्य उपसंपादक रहे श्री हरीश पंत, वरिष्ठ उपसंपादक रहे, वरिष्ठ संवाददाता रहे ओमप्रकाश तपस, संवाददाता अजित दलाल, लुधियाना के संवाददाता रहे राकेश सिंघी और अन्य लोग थे। ये लोग चंडीगढ़ संस्करण से जुड़े रहे है, इसके अलावा उन सभी लोगों को याद किया गया जो जनसत्ता टीम में रहे। 
्आयोजन में सबसे पहले शिमला, फिर दिल्ली में संवाददाता रहे और अब हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के विधायक मुकेश अग्निहोत्री ने जनसत्ता को सलाम करते हुए हुए कहा कि आज वे जिस मुकाम पर है वहां तक ले जाने में जनसत्ता की प्रमुख भूमिका रही। इस अखबार ने उनको पहचान दी, अगर इस अखबार से जुड़े न होते तो शायद यह मुकाम नहीं मिलता। वजह अखबार की प्रमाणिकता और काम करने वालो की जबरदस्त साख। कहा कि दस साल से ज्यादा हो गया जनसत्ता से अलग हुए लेकिन आज भी उन्हें यह अखबार ही सबसे प्रिय और अपना लगता है। वे तन, मन और धन से आज भी इसी से जुड़े हुए है और हमेशा जुड़े रहेंगे। मुख्य उपसंपादक रहे और अब उत्तराखंड में चाइल्ड राइट प्रोटेक्शन कमीशन के चेयरमैन अजय सेतिया ने अपने पत्रकारिता करियर की पंजाब केसरी से टीवी चैनल तक के सफर के बारे में बताया लेकिन जनसत्ता पर अटक गए और खूब बताया कि किस तरह यह अखबार सबसे अलग था। 
डिप्टी न्यूज एडीटर रहे विनय भार्गव ने अपने विचार साझे किए। कहा कि अगर उनके करियर की शुरुआत जनसत्ता से ही होती तो वे अपने को धन्य समझते क्योंकि यहां सीखने को बहुत कुछ है। बलवंत तक्षक ने कहा कि उन्होंने छोटे से अखबार से करियर की शुरुआत की, कुछ और अखबारों में काम किया लेकिन काम की स्वतंत्रता का जौ माहौल जनसत्ता में मिला कहीं नहीं मिला और शायद मिलेगा भी नहीं। सच को सच और झूठ को झूठ कहने की आजादी केवल इसी अखबार में है, वे अब इस अखबार के हिस्सा नहीं है लेकिन आज भी उनके मन में इसके प्रति वही सम्मान है जैसा काम करने के दौरान हुआ करता था। 
जनसत्ता में संवाददाता रहे सुरेंद्र अवस्थी अब पंजाब में सूचना आयुक्त हैं, उन्होंने अमृतसर रहते दौरान जनसत्ता से जुड़े कई अनुभव बताए। उन्होंने यह कहकर सभी को हैरान कर दिया कि जनसत्ता की प्रमाणिकता को आतंकवादी भी स्वीकार करते थे। एक बार छोटी सी खबर पर एक हथियारबंद आतंकवादी ने उनसे कुछ पूछा तो लगा वाकई जनसत्ता का असर है। जनसत्ता में काम कर चुके और अब दैनिक हिदुस्तान में कार्यरत वर्ष्ठि पत्रकार हरजिंदर ने भी अपने खट्ठे मीठे अनुभव लोगों को बताए। 
चंडीगढ़ संस्करण में शुरू से संवाददाता और फोटोग्राफर के तौर पर जुड़े और अब तक कायम बीरबल शर्मा भावुक हो गए और बताया कि किस तरह से जनसत्ता उनके खून में समा गया है। वे इस अखबार के अलावा कहीं और काम नहीं कर सकते। जनसत्ता स्थगित होने के बाद उन्होंने और जगह काम किया लेकिन वैसा माहौल नहीं मिला। जो पहचान जनसत्ता से मिली उसकी बदौलत आज देश प्रदेश में उनका नाम है। एक दौर में जनसत्ता हिमाचल का सिरमौर अखबार हुआ करता था, प्रसार संख्या में चाहे कुछ अखबार आगे हो लेकिन इस समाचार पत्र को जो रुतबा और साख हासिल हुई वह किसी को नहीं थी। जनसत्ता में हिमसत्ता के नाम का परिशिष्ट ने एक नई ऊंचाई छुई उसके बाद से हिम रखकर आगे अपने समाचार पत्र के नाम जोड़ने का सिलसिला चल निकला। उन्होंने कहा कि इस अखबार में बिना पैसे भी काम करने को तैयार हैं क्योंकि इससे अलग होने की वे सोच नहीं सकते। 
कई चैनलों और समाचार पत्रों में काम कर चुके मुख्य उपंसंपादक रहे राजीव मित्तल ने भी कहा कि जो माहौल जनसत्ता में था वैसा कहीं नही मिला। स्टार न्यूज के हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़ प्रमुख जगविंदर पटियाल ने भी यहां संवाददाता के तौर पर काम किया। बाद में वे दूसरे अखबार में चले गए। कहा कि जनसत्ता में काम करने का जो अनुभव उन्हें हुआ वह अब तक काम आ रहा है। अन्य वक्ताओं मनमोहन सिंह, धर्मेंद्र जोशी, गुरमीत सिंह, दीपक धीमान ने भी अपने अनुभव साझे किए। जनसत्ता छोड़कर गए लोगों को बाहर मीडिया में अच्छी जगह मिली इसकी एक वजह यह भी रही कि वे जनसत्ता से आए थे इसलिए उन्हें ज्यादा महत्व मिला। 
इंडियन एक्सप्रेस के स्थानीय ंसंपादक श्री विपिन पब्बी ने भी कहा कि वे शुरू से समूह में रहे हैं। जनसत्ता किस तरह से शुरु हुआ कैसे इसकी योजना बनी सब उनके जेहन में है। जनसत्ता की अलग छवि और रुतबा बना तो इसके लिए कड़ी मेहनत थी जिसकी बदौलत यह हिंदी पत्रकारिता में मिसाल बना सका। जनसत्ता के कार्यकारी संपादक श्री ओम थानवी ने श्री प्रभाष जोशी को नमन करते हुए कहा कि हिंदी पत्रकारिता के उस पुरोधा के काम को हम आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। यहां लिखने और काम करने की जो आजादी है वैसी शायद अन्य कहीं नहीं। 
उन्होंने कहा वह ऐसे दौर में यहां आए जब पंजाब में आतंकवाद चरम पर था। पंजाब में मीडिया लगभग उनके दबाव में था. बावजूद इसके जनसत्ता कभी नहीं आया। इसकी मिसाल देते हुए बताया कि तब आतंकवादियों ने क्षेत्र के सभी अखबारों को अपनी बनाई एक आचार संहिता भेजी जिसके मुताबिक समाचार पत्रों में क्या छपे और क्या न छपे तय था। इसके लिए एक सप्ताह का अल्टीमेटम भी दिया गया था। सभी अखबारों ने उस आचार संहिता को प्रमुखता से छापा लेकिन जनसत्ता ने ऐसा नहीं किया और एक बडी चुनौती स्वीकार की। संपादक होने के नाते उन्होंने अपने और स्टाफ के लोगों की एक मायने में ंिजदगी दांव पर लगा दी थी। सब कुछ ठीक निपट गया, बाद में उन्हें लगा कि उन्होंने जो कुछ किया वह ठीक ही था। यह बात प्रेस कौंसिल आफ इंडिया के दस्तावेज में आज भी दर्ज है कि जनसत्ता केवल मात्र अखबार था जिसने आतंकवादियों की उस आचार संहित को नहीं छापा था। उन्होंने कहा कि हिंदी पत्रकारिता में जनसत्ता का अलग नाम है, इसका नाम ही पर्याप्त है। जिस तरह एम्स से निकले डाक्टर की पहचान है वैसी ही हिंदी पत्रकारिता में जनसत्ता की है।
 कार्यक्रम में शामिल न हो पाने वालों में जनसत्ता चंडीगढ़ के पूर्व संपादक श्री जितेंद्र बजाज, सुधांशू भूषण मिश्र (अमेरिका), अमित प्रकाश सिंह, अशोक पांडेय, अमरनाथ, अवधेश कुमार श्रीवास्तव (अकु श्रीवास्तव),अजय श्रीवास्तव, अरुण बोथरा, नीलम शर्मा, प्रसून लतांत, विमल जैन, हरिंदर राणावत, हयात सिंह नेगी, अशोक महाजन, महादेव चौहान, रमेश व्यास, जगमोहन फुटेला, अनिल शर्मा, अमर चंद छाबड़ा, सर्वदमन सांगवान, प्रमोद कौंसवाल, भूपेंद्र नागपाल, धर्मेंद्र सक्सेना, सायदा नियाजी, विजय गुप्ता आदि दर्जनों ऐसे रहे जिनका नाता जनसत्ता से रहा या अब भी है। इनके अलावा भी ऐसे काफी लोग है जिनसे संपर्क नहीं हो सका, उनकी कमी सभी को खली। इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने चंडीगढ़ जनसत्ता छोड़ने के बाद कभी संपर्क भी नहीं किया। 
 कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में नरेंद्र विद्यालंकार, प्रमोद द्विवेदी, नंद कौशिक ऋतुराज, रामकृष्ण उपाध्याय, शशि भूषण शर्मा, यशवीर कादियान, कपिल चड्ढा, नाथू सिंह महरा, नत्थू राम शर्मा, ध्यान सिंह, भूपेंद्र प्रतिबद्ध, सुमन भटनागर, सुरेंद्र सांगवान, संजीव शर्मा, अजय शर्मा, हरिशंकर वर्मा, रतिराम जोगी, शिवलाल, बलवीर कुमार, दिनेश गोयल, हृदयपाल सिंह, शिशु पटियाल, कुलदीप चंदेल, रामकिशोर द्विवेदी, अश्विनी वर्मा, आशा अर्पित सैनी, अमरजीत सिंह और गुरकृपालसिंह अश्क, आदि थे। 
हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और चंडीगढ़ में जनसत्ता का पूरा नेटवर्क था और सैकड़ों लोग थे। जाहिर है काफी लोग समारोह मे बुलाए नहीं जा सके। आयोजकों ने अपनी तरफ से हर उस शख्स को बुलाने का प्रयास किया जो जनसत्ता से जुड़ा रहा और किसी न किसी रूप में इसका हिस्सा रहा। लगभग साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुआ कार्यक्रम तीन बजे तक चला तो समय का पता ही नहीं चला। अगली बार कब और कहां एक साथ इतने लोग होंगे कौन जाने ? क्या पता फिर कोई ऐसा ही कार्यक्रम बन जाए। आमीन।


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संप्रतिः जनसत्ता में उपसंपादक
संपर्क 98145-48074
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